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India charted a neutral path despite pressures
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India charted a neutral path despite pressures
THE NPT IS MULTILATERAL AGREEMENT WITH 189 STATES AND FIVE OFFICIAL NUCLEAR NATIONS THE CTBT WAS APPROVED BY THE UN GENERAL ASSEMBLY ON SEPTEMBNER 1996. INDIA IS NOT A SIGNATORY TO BOTH OF THESE – J. S. Rajput India stands with its head high because its political leadership displayed courage and futuristic vision in remaining Read more »
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व्यग्रता, उग्रता और समग्रता
– जगमोहन सिंह राजपूत दीर्घकालीन परिप्रेक्ष्य में समाधान के लिए शिक्षा की ओर ही जाना होगा। प्रारंभिक वर्षों में सभी बच्चों को सभी पंथों की समानता के पाठ पढ़ने होंगे, भिन्नताओं का आदर करना सीखना होगा। पिछले कुछ दशक में आतंकवाद और पांथिक कट्टरवाद जिस तेजी से फैला है, उससे सारे विश्व में व्यक्तिगत और Read more »
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भारतीय राजनीति का छिछला स्तर, स्वाभिमानी नागरिकों को शर्मिंदा करता है अस्वीकार्य शब्दों का प्रयोग
भारत के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को दो शब्दों में समेटा जा सकता है-व्यग्रता में उग्रता। इसका सबसे बड़ा उदाहरण बनकर उभरे हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल। अन्ना हजारे के नाम पर मिली प्रसिद्धि के बाद उन्हें अपने सारे वादे भूल जाने में कोई समय नहीं लगा। – जगमोहन सिंह राजपूत वैसे तो इन Read more »
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Tagore’s education is for joy and happiness
The education philosophy of Tagore has received acceptance from the modern-day education policymakers – J. S. Rajput Gurudev Rabindranath Tagore remains a highly respected intellectual stalwart to most of the Indians who know him as the author of the National Anthem and the recipient of the Nobel Prize for literature in the year 1913 for Read more »
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बौद्धिक उत्कृष्टता का अर्थ
भारत में दर्शन और ज्ञान परंपरा, जो वैश्विक भाईचारे की अवधारणा पर विकसित हुई है, ऐसी सभी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने में सक्षम है। प्रारंभ शैक्षिक संस्थाओं से ही करना होगा। – जगमोहन सिंह राजपूत आज जब विश्व में हर तरफ ज्ञान-समाज की संकल्पना अपना व्यावहारिक स्वरूप सभी के समक्ष स्वत: ही प्रस्तुत कर Read more »
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अनुचित भाषा का बढ़ता प्रयोग
आज देश में अधिकांश दलों और राजनेताओं का लक्ष्य भी किसी भी तरह सत्ता में पहुंचने तक सीमित हो गया है। उन्हें यह समझना होगा कि सत्ता में पहुंच कर जनसेवा कर पाना ही एकमात्र विकल्प नहीं है। -जगमोहन सिंह राजपूत इस समय भारत की ओर सारा विश्व आशा से देख रहा है। यह केवल Read more »
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भारत की ‘विकास यात्रा’ में पश्चिम का असर, निस्वार्थी, सेवाभावी जनप्रतिनिधि और लोकसेवक गायब
गांधी के देश में ही कितने लोकसेवक और चयनित प्रतिनिधि अपरिग्रह के लिए जाने-पहचाने जाते हैं? सामान्य जन से पूछिए तो वह यही कहेगा कि सत्ता में पहुंचे जन प्रतिनिधि तो शायद- अपवाद छोड़ कर- अपरिग्रह की अवधारणा से ही अपरिचित लगते हैं। -जगमोहन सिंह राजपूत थामस फ्रीडमैन ने लगभग दो दशक पहले अपनी पुस्तक Read more »
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Moral compass is critical for democracy
The 75+ generation of Indians has seen and observed the decline of moral and humanistic values in the political sphere, and the consequent deterioration of the credibility of leaders, elected representatives, and those in office. It adversely impacts the very vitals of democracy, its institutions and, above all, the people and their concerns. – Read more »
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पाकिस्तान की बदहाली के सबक
नैतिकता एवं मानवीय संवेदनशीलता का ह्रास व्यक्ति को ही नहीं, राष्ट्र को भी अंदर से खोखला जगमोहन सिंह राजपूत बना देता है – जगमोहन सिंह राजपूत भारत ने तुर्किये को भूकंप जनित घोर संकट के समय जिस तत्परता से सहायता पहुंचाई, उसकी वैश्विक स्तर पर प्रशंसा हुई, लेकिन पाकिस्तान ने इसकी कोई प्रशंसा नहीं की। Read more »
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हमेशा याद रहेगा वैदिकजी का संघर्ष
उनका इस तरह जाना अविश्वसनीय लग रहा है। जिस उत्साह से वैदिक जी एक नए दक्षेश की योजना को साकार रूप देने में लगे थे, उससे तो युवा ही नहीं उनके सभी सहयोगी भी प्रेरणा प्राप्त कर रहे थे। देश में हिंदी भाषा तथा भारतीय भाषाओं के लिए तरुणाई से ही लगातार कर्मठता से Read more »
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सिमटते संसाधन
सिद्ध दार्शनिक, वैज्ञानिक और गणितज्ञ रेने देकार्त (1596 -1650 ) ने लिखा था कि यह सामान्य मानवीय प्रवृत्ति है कि जो मुफ्त में मिल रहा हो, उसे निस्संकोच संग्रहीत कर लिया जाए, भले ही उसकी आवश्यकता हो या न हो। लेकिन देने के समय इसका ठीक उल्टा होता है। जितना कम देने से काम चल Read more »
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अस्थायी अध्यापकों का अनावश्यक चलन
दिल्ली सरकार में शिक्षा मंत्री के एक हालिया बयान से मुझे बड़ी हैरानी हुई है। वह चाहते हैं कि दिल्ली विश्वविद्यालय यानी डीयू के 28 महाविद्यालयों में नियमित अध्यापकों की नियुक्तियों को तुरंत रोक दिया जाए, क्योंकि इससे उनकी सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा। बोझ तो बढ़ेगा, क्योंकि नियमित अध्यापकों को अधिक वेतन देना होगा Read more »