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Prof. Jagmohan Singh Rajput

शिक्षा में सुधार का संकल्प
नववर्ष के संकल्पों में सरकार और समाज यह भी संकल्प ले कि शिक्षा क्षेत्र जिन सुधारों की बाट जोह रहा है, उन्हें मूर्त रूप देने में विलंब न किया जाए
– जगमोहन सिंह राजपूत

अपनत्व से अपरिचय
शिक्षा
प्रगति और विकास की तेजी के इस दौर में लगातार सीखना अब केवल स्कूलों और महाविद्यालयों तक सीमित नहीं है। इसके क्षितिज का विस्तार सार्वभौमिक है, संपूर्ण राष्ट्र को सीखते रहना है।
– जगमोहन सिंह राजपूत

Let love permeate life and living
For human survival, love is the panacea. It must essence of human life else we are bound to end up fighting and annihilating everything around
– J. S. Rajput

अस्थायी अध्यापकों का अनावश्यक चलन
प्रत्येक सजग सक्रिय और जागरूक देश अपनी शिक्षा व्यवस्था को लगातार सुधारने का प्रयास करता है। ऐसा सुधार तभी संभव हो पाता है जब सरकारें और संस्थान अध्यापकों को अपेक्षित सम्मान देते हैं। उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति कर उन्हें उचित परिवेश में कार्य करने की स्वायत्तता प्रदान करते हैं।
– जगमोहन सिंह राजपूत

सिमटते संसाधन
प्रकृति क्षमा नहीं करती है। मनुष्य को मस्तिष्क, वैचारिक और विश्लेषणात्मक कौशल मिला है और उससे अपेक्षा है कि वह प्रकृति से उतना ही संसाधन उपयोग में लाए, जिसकी प्रतिपूर्ति करने का उत्तरदायित्व वह निभा सके।
– जगमोहन सिंह राजपूत

हमेशा याद रहेगा वैदिकजी का संघर्ष
उनका इस तरह जाना अविश्वसनीय लग रहा है। जिस उत्साह से वैदिक जी एक नए दक्षेश की योजना को साकार रूप देने में लगे थे, उससे तो युवा ही नहीं उनके सभी सहयोगी भी प्रेरणा प्राप्त कर रहे थे। देश में हिंदी भाषा तथा भारतीय भाषाओं के लिए तरुणाई से ही लगातार कर्मठता से जुड़े रहे वैदिक जी पिछले छह दशकों से देश में युवाओं के लिए, विशेष कर राजनीति और पत्रकारिता के क्षेत्र में रुचि रखने वालों के लिए, प्रेरणा स्रोत बने रहे हैं।
– जगमोहन सिंह राजपूत

The 75+ generation of Indians has seen and observed the decline of moral and humanistic values in the political sphere, and the consequent deterioration of the credibility of leaders, elected representatives, and those in office. It adversely impacts the very vitals of democracy, its institutions and, above all, the people and their concerns.
– J. S. Rajput

गांधी के देश में ही कितने लोकसेवक और चयनित प्रतिनिधि अपरिग्रह के लिए जाने-पहचाने जाते हैं? सामान्य जन से पूछिए तो वह यही कहेगा कि सत्ता में पहुंचे जन प्रतिनिधि तो शायद- अपवाद छोड़ कर- अपरिग्रह की अवधारणा से ही अपरिचित लगते हैं।
-जगमोहन सिंह राजपूत

आज देश में अधिकांश दलों और राजनेताओं का लक्ष्य भी किसी भी तरह सत्ता में पहुंचने तक सीमित हो गया है। उन्हें यह समझना होगा कि सत्ता में पहुंच कर जनसेवा कर पाना ही एकमात्र विकल्प नहीं है।
-जगमोहन सिंह राजपूत