पाकिस्तान की बदहाली के सबक

March 17th, 2023 / 0 comments

JS Rajput to represent UNESCO Executive Board

नैतिकता एवं मानवीय संवेदनशीलता का ह्रास व्यक्ति को ही नहीं, राष्ट्र को भी अंदर से खोखला जगमोहन सिंह राजपूत बना देता है

– जगमोहन सिंह राजपूत

भारत ने तुर्किये को भूकंप जनित घोर संकट के समय जिस तत्परता से सहायता पहुंचाई, उसकी वैश्विक स्तर पर प्रशंसा हुई, लेकिन पाकिस्तान ने इसकी कोई प्रशंसा नहीं की। जहां भारत ने एक बार फिर से मानवीय संवेदना का सशक्त उदाहरण प्रस्तुत किया, वहीं हमारे पड़ोसी ने फिर से वही ईर्ष्या और द्वेष को प्रकट किया। पाकिस्तान अपने को इस्लामी देश कहता है, लेकिन दूसरे इस्लामी देश को जाने वाली आपातकालीन सहायता में रोड़े अटकाने में नहीं हिचकता । दिवालिया घोषित होने की कगार पर खड़ा यह देश इन दिनों पूरे विश्व में सहायता मांग रहा है, लेकिन भारत को हजारों जख्म देने की नीति में कोई बदलाव नहीं कर रहा है। सत्ता से बेदखल होने के बाद हताशा और निराशा में डूबा हुआ विपक्ष आज चाहता है कि पाकिस्तान को परिवार माना जाए। वह कहे या न कहे, लेकिन भारत वहां सहायता पहुंचाए। हालांकि देश का जनमानस इसके लिए तैयार नहीं है। क्या भारत को यह भूल जाना चाहिए कि 26 नवंबर, 2008 को मुंबई में हमला किसने कराया था ? उसके अपराधी पाकिस्तान में आज भी खुलेआम घूम रहे हैं। अपने यहां अल्पसंख्यकों का लगभग सफाया करने वाला पाकिस्तान भारत के मुसलमानों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी चिंता व्यक्त करता है और हंसी का पात्र बनता रहा है। किसी भी देश को सहायता देने के लिए सर्वोत्तम नीति-निर्देश यक्ष-युधिष्ठिर संवाद में निहित है। यक्ष से युधिष्ठिर कहते हैं कि दान सुपात्र को ही देना चाहिए। जाहिर है भारत के लिए पाकिस्तान अब सुपात्र की श्रेणी में नहीं आता।

किसी भी निष्पक्ष अध्ययन में यह स्वीकार्य होगा कि भारत में लोकतंत्र की जड़ें गहराई तक पैठ बना चुकी हैं। वर्ष 1947 में भारत के मुसलमानों के लिए एक सुरक्षित देश निर्मित करने की अपरिपक्व जिद पर विभाजन की त्रासदी लादकर बनाए गए पाकिस्तान की वर्तमान दयनीय स्थिति से आज सारा विश्व अवगत है। दरअसल पाकिस्तान के इस्लामी शासक कभी भी अन्य मतावलंबियों के प्रति दुर्भावना से मुक्त नहीं हो सके। भारत से प्रतिस्पर्धा करने में वे इतने अंधे हो गए कि अपने देश के लोगों के हितों की पूर्ति उनकी प्राथमिकता में ही नहीं रही। यही नहीं, वहां आधिकारिक तौर पर प्रारंभिक शिक्षा  से ही हिंदुओं के प्रति विशेष रूप से घृणा के पाठ पढ़ाए जा रहे हैं। पाकिस्तान ने अन्य सभी पंथों को इस्लाम से निम्नतर मानने के लिए अपने युवाओं को जिस तन्मयता से तैयार किया गया, उसने उसे दुनिया का सबसे असुरक्षित देश तो बना ही दिया, स्वयं पाकिस्तान में हिंसा का साम्राज्य फैला दिया है। पाकिस्तान में जिस प्रकार अल्पसंख्यकों की संख्या घटी, वह मानवाधिकारों के हनन का अत्यंत दुखद अध्याय है। नैतिकता और मानवीय संवेदनशीलता का ह्रास व्यक्ति को ही नहीं, राष्ट्र को भी अंदर से खोखला बना देता है।

ऐसे वातावरण में भ्रष्ट आचरण करने वालों को खुली छूट मिल जाती है। अविभाजित भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सभी समुदायों तथा क्षेत्रों की सशक्त भागीदारी रही। खान अब्दुल गफ्फार खान जैसे देशभक्तों को कौन भुला सकता है जिन्हें विभाजन ने ‘भेड़ियों को सौंप दिया था। गांधीजी द्वारा प्रतिपादित मूल्यों का प्रभाव मत और पंथ से ऊपर उठकर सभी पर पड़ा था। आजादी के बाद के दो-तीन दशकों तक देश में सत्ता और उसके बाहर ऐसे लोग उपस्थित थे, जिन्होंने देश के लिए सबकुछ न्योछावर कर दिया था। युवाओं पर उनका प्रभाव पड़ता था । जो सत्ता में पहुंचकर वहां की चकाचौंध में इन मूल्यों को त्यागना चाहते थे, उनकी भी आंखों में थोड़ी शर्म बाकी थी। इस स्थिति ने ही भारत में लोकतंत्र को पनपने में सहायता की। वहीं पाकिस्तान इससे वंचित रहा, क्योंकि उसके नेतृत्व को व्यक्तिगत लालच ने प्रारंभ से ही जकड़ लिया था। वहां नैतिकता के स्थान पर मतांधता को बढ़ावा दिया गया, जिसके परिणाम सबके सामने हैं।

लोकतंत्र की जड़ों को निरंतर खाद-पानी देते रहना भी आवश्यक होता है। भारत में पिछले दशक में जो नीतिगत परिवर्तन हुए हैं, उनके आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पक्षों पर सकारात्मक प्रभाव पड़े हैं। जो सत्ता में नहीं हैं, मगर पहले रह चुके हैं, उनकी व्यथा तो समझी जा सकती है, लेकिन उनकी सकारात्मक परिवर्तन को देख पाने की क्षमता का पूर्ण ह्रास लोकतंत्र के आगे बढ़ते रहने के लिए चिंता का विषय है। दिल्ली नगर निगम में पार्षदों के बीच हाथापाई जैसे अनेक उदाहरण न केवल शर्मनाक हैं, बल्कि सामान्य जन द्वारा उनकी भर्त्सना आवश्यक है। वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा चलाई गई कल्याणकारी योजनाओं में किसी भी प्रकार के भेदभाव की पूर्णरूपेण अनुपस्थिति भारत के अल्पसंख्यकों के मध्य बड़ा सकारात्मक दृष्टिकोण ला रही है। यह परिवर्तन देश के विकास को नई दिशा देने में बड़ी भूमिका निभाएगा, लेकिन देश के हर सजग और सतर्क नागरिक को ध्यान में रखना होगा कि वे विघटनकारी तत्व जो वोटबैंक, जातीयता और क्षेत्रीयता के आधार पर लोगों को पांच-छह दशक तक बरगलाते रहे, आज पुनः सक्रिय हैं। उन्हें जार्ज सोरोस जैसे समाज को बांटने वालों पर पूरा विश्वास है। सामाजिक सद्भाव और पंथिक समरसता को लेकर जो नया दृष्टिकोण देश में पनप रहा है उस पर लगातार आक्रमण करने वालों से सचेत रहना आवश्यक है। पाकिस्तान के आज बदहाली के गर्त में पहुंचने के मुख्य कारण उसके नेतृत्व में भविष्य दृष्टि की अनुपस्थिति, स्वार्थ और लालच हैं। इसका मुख्य आधार भारत विरोध और हिंदुओं तथा भारतीय संस्कृति के प्रति उनकी घोर घृणा ही है। भारत और हर भारतीय को इस तथ्य को याद रखना आवश्यक है।

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